12 March 2025
रुद्रपुर न्यूज़

टेकर्स, नॉट मेकर्स ऑक्सफैम रिपोर्ट – सरकारें पूंजीपतियों की तिजोरियां भर रहीं, जनकल्याण का पैसा पूंजीपतियों की अंटी में, बढ़ रहे अमीर, व्यापक जनता के लिए खतरे

टेकर्स, नॉट मेकर्स रिपोर्ट में ऑक्सफैम ने कहा कि दुनिया के दस सबसे अमीर लोगों की संपत्ति औसतन प्रतिदिन लगभग 10 करोड़ डॉलर बढ़ी है। अगर वे रातोंरात अपनी संपत्ति का 99 प्रतिशत खो दें, तो भी वे अरबपति बने रहेंगे। ब्रिटेन के गैर-सरकारी संगठन ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व में असमानता बढ़ रही है। स्विट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक बैठक के पहले दिन जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में अरबपतियों की संपत्ति तेजी से बढ़ रही है। उनकी संपत्ति 2024 में 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 15 ट्रिलियन डॉलर हो गई है, जो 2023 की तुलना में तीन गुना अधिक है। टेकर्स, नॉट मेकर्स का अभिप्राय है, यह अमीर पैसा नहीं कमाते बल्कि दूसरों के धन पर कब्जा करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, जबकि सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास अब वैश्विक संपत्ति का 45 प्रतिशत हिस्सा है, वहीं दुनिया की 44 फीसदी आबादी प्रतिदिन 6.85 डॉलर से कम पर जीवन यापन कर रही है, और वैश्विक गरीबी दर में 1990 के बाद से कोई खास बदलाव नहीं आया है। ऑक्सफैम के कार्यकारी निदेशक अमिताभ बेहर ने कहा, हम इस रिपोर्ट को एक चेतावनी के रूप में पेश कर रहे हैं कि दुनिया भर में आम लोग कुछ लोगों की अपार संपत्ति के कारण कुचले जा रहे हैं। ऑक्सफैम ने टेकर्स, नॉट मेकर्स नाम की अपनी रिपोर्ट में एक अन्य बिंदु की ओर ध्यान दिलाया है कि अगले दशक में खरबपतियों के उभरने की उम्मीद है, क्योंकि पिछले 10 वर्षों में सबसे अमीर 10 अरबपतियों की संपत्ति औसतन प्रतिदिन लगभग 10 करोड़ डॉलर बढ़ी है।
पिछले साल 204 नए अरबपति उभरे और 2024 में अरबपतियों की कुल संपत्ति में दो ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हुई. एशिया में 41 नए अरबपति बने हैं। ऑक्सफैम ने कहा कि 2024 में एशिया में अरबपतियों की संपत्ति में 299 अरब डॉलर की वृद्धि हुई. ऑक्सफैम ने भविष्यवाणी की है कि अब से एक दशक के भीतर कम से कम पांच अरबपति ऐसे होंगे जिनकी संपत्ति एक हजार अरब डॉलर से ज्यादा होगी। बेहर ने चेतावनी दी कि एक ऐसी आर्थिक प्रणाली बनाई गई है, जहां अरबपति अब आर्थिक नीतियों, सामाजिक नीतियों को आकार देने में सक्षम हो रहे हैं, जिससे उन्हें अधिक से अधिक लाभ मिल रहा है।
टेकर्स, नॉट मेकर्स रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुनिया भर में दस में से एक महिला अत्यधिक गरीबी में रहती है, जिसकी कमाई प्रतिदिन 2.15 डॉलर से भी कम है। रिपोर्ट कहती है कि महिलाएं प्रतिदिन 12.5 अरब घंटे बिना वेतन श्रम देती हैं, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनुमानित 10.8 ट्रिलियन डॉलर का योगदान होता है, जो वैश्विक तकनीकी उद्योग के मूल्य का तीन गुना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अरबपतियों की 60 फीसदी संपत्ति उन्हें विरासत, एकाधिकार शक्ति या क्रोनी कनेक्शन से प्राप्त होती है, जो दिखाता है कि अरबपतियों की अत्यधिक संपत्ति काफी हद तक अयोग्य है। अधिकार समूह ने दुनिया भर की सरकारों से असमानता को कम करने, अत्यधिक धन को समाप्त करने और नए अभिजात वर्ग को खत्म करने के लिए सबसे अमीर लोगों पर टैक्स लगाने की अपील की है।
टेकर्स, नॉट मेकर्स रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में अरबपतियों की संपत्ति औसतन 5.7 अरब अमेरिकी डॉलर प्रतिदिन बढ़ी, जबकि अरबपतियों की संख्या 2023 में 2,565 से बढ़कर 2,769 हो गई.
ऑक्सफैम ने कहा कि दुनिया के दस सबसे अमीर लोगों की संपत्ति औसतन प्रतिदिन लगभग 100 मिलियन डॉलर बढ़ी है, भले ही वे रातोंरात अपनी संपत्ति का 99 प्रतिशत खो दें, फिर भी वे अरबपति बने रहेंगे। इसमें कहा गया है कि फोर्ब्स द्वारा किए गए शोध में पाया गया है कि 30 वर्ष से कम आयु के प्रत्येक अरबपति को अपनी संपत्ति विरासत में मिली है, जबकि यूबीएस ने अनुमान लगाया है कि आज के 1,000 से अधिक अरबपति अगले दो से तीन दशकों में अपने उत्तराधिकारियों को 5.2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की संपत्ति देंगे। ऑक्सफैम ने कहा, विशेष रूप से यूरोप में बहुत से अति-धनवान लोगों ने अपनी संपत्ति का एक हिस्सा ऐतिहासिक उपनिवेशवाद और गरीब देशों के शोषण के कारण अर्जित किया है।
ऑक्सफैम के कार्यकारी निदेशक अमिताभ बेहर ने कहा कि हर देश में शिक्षकों पर निवेश करने, दवाइयां खरीदने और अच्छी नौकरियां पैदा करने के लिए जिस धन की सख्त जरूरत है, उसे सबसे अमीरों के बैंक खातों में डाला जा रहा है. उन्होंने कहा, यह ना केवल अर्थव्यवस्था के लिए बुरा है, बल्कि मानवता के लिए भी बुरा है।
ऑक्सफैम गरीबी पर काम करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है और इसकी रिपोर्ट हर साल जारी होती है और हर साल ही इस पर खूब चर्चा भी होती है. लेकिन इसके आलोचकों का कहना है कि रिपोर्ट पश्चिमी देशों के कुछ चुनिंदा अध्ययनों के आधार पर तैयार की जाती है और इसके नतीजे व्यवहारिक नहीं होते. अमीरों से धन ले कर गरीबों में बांटने की ऑक्सफैम की रॉबिन हुड वाली नीति भी लगातार सवालों के घेरे में रहती है। कारण यही है कि सरकारें पूंजीपतियों की गुलाम हैं और पूंजीपतियों के हित में काम करती हैं। सिविल सोसाइटी की ओर से सरकारों की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन नहीं खड़ा किया जा सका है। सरकारें सरकारी नौकरियों और जनकल्याणकारी कामों में लगातार कटौती कर रही हैं और टैक्स बढ़ाती जा रही हैं।

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